जैसा हूँ मुझे रहने दे
दर्द स्वयं ही सहने दे
जैसा हूँ मुझे रहने दे।
मत रोको विचार धार को
अविरल धारा बहने दे।
क्या कह रहा सुनो न रोको
आज बहुत कुछ कहने दे।
बाध बने संकलित हृदय में
अब बेचैनी बढती जाती।
बाधा दीवारे ढहने दे
आज बहुत कुछ कहने दे।।
…………✍विन्ध्य प्रकाश मिश्र ‘विप्र’