समकालीन थे भगवान महावीर और गौतम बुद्ध –
लेखिका- जयति जैन “नूतन”
एक राजा जिसने राजपाट होते हुए भी दिगम्बरत्व धारण किया और समूचे प्राणी जगत का नेतृत्व कर उसे सत्य, अहिंसा और प्रेम का मार्ग दिखलाया। ढाई हजार वर्ष बीत जाने के बाद भी उनके सिद्धांत और उनका कुशल नेतृत्व प्रासंगिक है। वह नेता कोई और नहीं बल्कि अहिंसा के प्रमुख प्रणेता भगवान महावीर हैं।
उनके समकालीन भगवान बुद्ध ने कहा था कि ‘तीर्थंकर महावीर एक अनुपम नेता है। वे अनुभवी मार्ग प्रदर्शक रहे हैं और सदैव जनता द्वारा सम्मानित, वंदनीय रहेंगे। उनके हर उपदेश, सिद्धांत में कुशल नेतृत्व की छवि दिखाई देती है। चाहे वह प्राणी पे्रम हो या फिर नारी स्वतंत्रता अधिकार की बात।’
जैन एवं बौद्ध दोनों धर्म-दर्शन श्रमण संस्कृति के परिचायक हैं। इन दोनों में श्रम का महत्त्व अंगीकृत है। ‘श्रमण’ शब्द का प्राकृत एवं पालिभाषा में मूलरूप ‘समण’ शब्द है, जिसके संस्कृत एवं हिन्दी भाषा में तीन रूप बनते हैं – १. समन – यह विकारों के शमन एवं शान्ति का सूचक है। २. समन- यह समताभाव का सूचक है। ३. श्रमण – यह तप, श्रम एवं पुरुषार्थ का सूचक है। श्रमण दर्शनों में ये तीनों विशेषताएँ पायी जाती है।
गौतम बुद्ध का जन्म 563 ई.पू और भगवान महावीर का जन्म 599 ई.पू. हुआ था। मतलब यह कि भगवान महावीर का जन्म बुद्ध के जन्म के पूर्व हुए था और वे दोनों ही एक ही काल में विद्यमान थे। भगवान महावीर ने चैत्र शुक्ल की तेरस को जन्म लिया जबकि गौतम बुद्ध ने वैशाख पूर्णिमा के दिन जन्म लिया था। दोनों ही का जन्म राज परिवार में हुआ था। दोनों ने ही सत्य को जानने के लिए गृह का त्याग कर दिया था। दोनों ही इस दौरान तपस्या करते और प्रकृति की गोद में, जंगल में वृक्ष की छाया में ही अपना जीवन बिताते थे।दोनों ही धर्म में अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चरित्र, तप और ध्यान, अनिश्वरवाद आदि विद्यमान हैं। दोनों की ही विचारधारा अहिंसा पर आधारित थी और दोनों ने ही अहिंसा पर ज्यादा बल दिया।
उल्लेखनीय है कि दोनों के ही जीवन में सिद्धार्थ, साल वृक्ष, क्षत्रिय, तप, अहिंसा और बिहार की समानता रही। दोनों की ही कर्मभूमि बिहार ही रही है।
दुनियाभार में भगवान महावीर और गौतम बुद्ध की ही मूर्तियां अधिक पाई जाती हैं। बुद्ध और महावीर के काल में उनकी बहुत तरह की मूर्तियां बनाकर स्तूप या मंदिर में स्थापित की जाती थी। दोनों की ही मूर्तियां को तप या ध्यान करते हुए दर्शाया गया हैं। महावीर स्वामी की अधिकतर मूर्तियां निर्वस्त्र है जबकि गौतम बुद्ध की मूर्तियां वस्त्र पहने हुए होती हैं।
1) भगवान महावीर स्वामी :-
भगवान महावीर स्वामी का जन्म स्थान क्षत्रिय कुण्ड ग्राम (कुंडलपुर-वैशाली) बिहार है।
भगवान महावीर स्वामी का जन्म नाम वर्द्धमान था जबकि उनके पिता का नाम सिद्धार्थ और माता का नाम त्रिशला था , महावीर स्वामी ज्ञातृ क्षत्रिय वंशीय नाथ थे।
महावीर स्वामी ने 30 वर्ष की आयु में राजपाठ छोड़कर कैवल्य ज्ञान प्राप्त किया।
महावीर स्वामी ने वैशाख शुक्ल 10 को बिहार में जृम्भिका गांव के पास ऋजुकूला नदी-तट पर स्थित साल वृक्ष ने नीचे कैवल्य ज्ञान प्राप्त किया था। महावीर स्वामी को लगभग 72 वर्ष से अधिक आयु में कार्तिक कृष्ण अमावस्या-30 को 527 ई.पू. पावापुरी उद्यान (बिहार) में महापरिनिर्वाण प्राप्त हुआ था।
महावीर स्वामी का दर्शन पंच महाव्रत, अनेकांतवाद, स्यादवाद और त्रिरत्न है। महावीर स्वामी ने अपने उपदेश खासकर प्राकृत भाषा में दिए हैं जबकि वे अर्धमगधी और पाली का उपयोग भी करते थे।
महावीर के प्रमुख तीन शिष्य जिन्हें गणधर भी कहते हैं- गौतम, सुधर्म और जम्बू ने महावीर के निर्वाण के पश्चात जैन संघ का नायकत्व संभाला। उन्होंने महावीर स्वामी के विचारों को लोगों के सामने रखा। महावीर स्वामी वर्तमान जैन तीर्थंकरों की कड़ी के अंतिम तीर्थंकर थे।
2) भगवान बुद्ध :-
गौतम बुद्ध का जन्म नेपाल के लुम्बिनी वन में रुक्मिनदेई नामक स्थान पर हुआ था। गौतम बुद्ध का जन्म नाम सिद्धार्थ था जबकि उनके पिता का नाम शुद्धोधन और माता का नाम महामाया देवी था। गौतम बुद्ध शाक्य क्षत्रिय वंशी थे।
गौतम बुद्ध ने वैशाख पूर्णिमा के दिन वटवृक्ष के नीचे संबोधि (निर्वाण) प्राप्त की थी। आज उसे बोधीवृक्ष कहते हैं जो कि बिहार के गया में स्थित है। वैशाख पूर्णिमा के दिन स्वयं की पूर्व घोषणा के अनुसार गौतम बुद्ध ने 483 ईसा पूर्व उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में जुड़वां शाल वृक्षों की छाया तले 80 वर्ष की उम्र में महापरिनिर्वाण प्राप्त किया।
बुद्ध दर्शन के मुख्य तत्व ये हैं- चार आर्य सत्य, आष्टांगिक मार्ग, प्रतीत्यसमुत्पाद, अव्याकृत प्रश्नों पर बुद्ध का मौन, बुद्ध कथाएं, अनात्मवाद और निर्वाण।
बुद्ध ने अपने उपदेश पाली भाषा में दिए, जो त्रिपिटकों में संकलित हैं। गौतम बुद्ध के शिष्यों ने ही बौद्ध धर्म को आगे बढ़ाया। इनमें से प्रमुख थे- आनंद, अनिरुद्ध (अनुरुद्धा), महाकश्यप, रानी खेमा (महिला), महाप्रजापति (महिला), भद्रिका, भृगु, किम्बाल, देवदत्त, और उपाली (नाई) आदि। हिन्दू गौतम बुद्ध को विष्णु का नौवां अवतार मानते हैं। जबकि पालि ग्रंथों में 27 बुद्धावतारों जिक्र मिलता है जिसमें गौतम बुद्ध 24वें अवतार माने जाते हैं। कुछ लोग उन्हें शिव का अवतार मानते हैं।
दोनों धर्मों में असमानताएँ:-
1) जैन धर्म के ग्रन्थ प्राकृत में है जबकि बौद्ध धर्म के पाली में।
2) जैन धर्म के त्रिरत्न सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चारित्र है। जबकि बौद्ध धर्म के त्रिरत्न बुद्ध, धर्म और संघ है।
3) जैन धर्म में जाति प्रथा का विरोध किया है पर वर्ण व्यवस्था का नहीं, जबकि बौद्ध धर्म में जाति प्रथा व वर्ण व्यवस्था दोनो का विरोध किया है।
4) जैन धर्म में देवताओं को जिन के नीचे रखा है तथा पुनर्जन्म में विश्वास, जबकि बौद्ध धर्म अनिश्वरवादी, अनात्मवादी, तथा पुनर्जन्म में विश्वास।
5) जैन धर्म अनन्त चतुष्टय, स्यादवाद को मानता है जबकि बौद्ध धर्म आष्टागिंक मार्ग, क्षण भंगवाद, नैरात्मवाद, प्रतीत्य समुत्पाद सिद्धांत को मानता है।
6) जैन श्रमण-श्रमणियों की आचारसंहिता अत्यन्त कठोर है जो उन्हें वाहनों द्वारा विदेशी यात्रा के लिए अनुमति प्रदान नहीं करती। जैनधर्म अपनी उदार एवं अनेकान्तवादी दृष्टि के कारण भारतीय वैदिक परम्पराओं के साथ समन्वय बिठाने में सक्षम रहा, अतः उसके समक्ष ऐसी कोई विवशता नहीं रही कि उसे यहाँ से पलायन करना पड़े।
बौद्ध भिक्षुओं को भारत से पलायन करना पड़ा था। बौद्धधर्म का भारत में पुनः प्रसार हुआ बीसवीं सदी में। जब डॉ. भीमराव अम्बेडकर स्वयं बौद्ध बने तथा भारतीय दलितवर्ग को विशाल स्तर पर बौद्धधर्म से जोड़ा। इक्कीसवीं सदी में अनेक विश्वविद्यालयों में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की योजना के अन्तर्गत बौद्ध अध्ययन केन्द्रों की स्थापना हो रही है।