जैनरेशन गैप
राघव…राघव निर्मला जोर जोर से बेटे को पुकार रही थी लेकिन राघव को सुनाई दे तब ना उसने कान में ईयर फोन जो ढूँस रखे हैं निर्मला गुस्से में राघव के कमरे में पहुँची तो देखा राघव दीन दुनिया से बेखबर मोबाइल पर गेम खेलने में मगन था…माँ को देख ईयर फोन निकाल कर बोला अब क्या है मॉम ? निर्मला गुस्से से बोली अरे कभी तो इस मोबाइल की गिरफ्त से निकलो अच्छी किताबें पढ़ो कुछ लिखो , यह सुन राघव हँसने लगा बोला मॉम अब ज़माना बदल गया है सब कुछ इस मोबाइल पर है आपको लगता है की मैं बस गेम खेलता हूँ ऐसा नही है सारी न्यूज़ देखता हूँ अपने पसंद के राईटर्स को पढ़ता हूँ आपको तो ये भी नही पता होगा की मैं स्टोरीज भी लिखता हूँ सब ऑनलाइन अब पैन उठाने की ज़रूरत नही है…मॉम ये 21वीं सेंचुरी है कहाँ हो आप…? निर्मला बोली मैं नही मानती जब तक कि पैन को हाथों से छूकर महसूस ना करो उसको पन्नों पर लिखते वक्त जो सुख मिलता है तुम नही समझ सकते ।
कमरे से बाहर जाते हुये निर्मला सोच रही थी इस पीढ़ी को जीने दो अपने ढ़ंग से हम जीयेंगें अपनेे तरिके से इस मोबाइल के चलते अपनी लेखनी को कब्र में नही जाने देंगे हमारी पीढ़ी को जो नशा है वो कायम रहेगा ना तुम बदलोगे ना हम…ये जैनरेशन गैप जो सदियों से चला आ रहा है कभी भरेगा ही नही….हम अपनी लेखनी को हमेशा ज़िंदा रखेंगें ये सोचते हुए एक नये उत्साह से भर चाय का पानी गैस पर चढ़ा एक नया विषय सोचने लगती है अपने आज के लेखन के लिए ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 09/07/2020 )