जेब कतरा -एक व्यंग–आर के रस्तोगी
एक जेब कतरा जेब काटते पकड़ा गया
कुछ पुलिस वालो के वह हत्थे चढ़ गया
पुलिस वाले बोले,तू जेब काटता है क्यू
जेब कतरा बोला,तुम रिश्वत मांगते हो क्यू
पुलिस वाले बोले,हमारे थाने बिकते है
सरे आम सारे देश मे नीलाम होते है
हमे भी उपर वालो को देना पड़ता है
बिना दिए अच्छा थाना कहा मिलता है ?
जो ज्यादा बोली लगायेगा
वही अच्छा थाना ले जाएगा
यही क्रम नीचे से ऊपर तक चलता रहता है
जैसे गैस का गुब्बारा नीचे से ऊपर तक चलता रहता हें
इसी तरह रिश्वत का बाजार भी चलता रहता है
कभी ठंडा,कभी गर्म चलता रहता है
यह सुनकर,जेब कतरा भी बोला
हमारे एरिये भी थानों कि तरह बिकते है
जो ज्यादा पैसे देता है उसको बढ़िया एरिया मिलता है
हर एरिया जेब कतरों मे बटे रहते है
पुलिस वाले भी उससे सटे रहते है
जेब काटता हूँ तो क्या गुनाह करता हूँ
जेब काट कर ही तो मै तुम्हारे हाथ गर्म करता हूँ
जेब मै नही,देश के नेता काट रहे है
देश की जेब काट कर ही तो विदेशो को धन भेज रहे है
असली जेब कतरे तो नेता है,उनको पकडो तुम
अगर तुम मे दम है तो उनको जेल मे डालो तुम
इससे देश की जेब कटनी बंद हो जायेगी
और देश की जनता भी सुख की चैन ले पायेगी
आर के रस्तोगी