“जून की शीतलता”
“जून की शीतलता”
आईसक्रीम खाएंगे हम तपती दोपहरी में
लगने लगी है अब तो ये बात पुरानी सी
अब वो जून पहले का सा तपता ना रहा
आज के जून की शीतलता है सुहानी सी,
भयंकर गर्मी सहते थे हम कभी जून में
जून के नाम से दिमाग गरम हो जाता था
रफ्तार से लू चलती थी सूं सूं की ध्वनि संग
आसमान मानों गोले आग के बरसाता था,
गीली जमीन पर हम कूलर लगाकर सोते थे
इंतजार हर बच्चा सूरज ढलने का करता था
कब शाम हो कब घर से बाहर जाकर खेले
चंचल बचपन मन ही मन हिलोरे भरता था,
छम छम करती अब तो आती है बदरिया
सावन वाली फुहार का आनंद हम पाते हैं
नंगे पैर हम घूम रहे बालू माटी में मज़े से
समुद्र का सा अहसास रेगिस्थान में पाते हैं।