जून की कड़ी दुपहरी
जून की कड़ी दुपहरी
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प्रिय तुम ,
स्मृतियों की शीतलता
टांक दो मेरी कमीज पर
ऊपर से तीसरी बटन की जगह
ताकि यह हृदय के ऊपर ही रहे
इस जून की कड़ी दुपहरी में
पलों को कागज के पन्नो सा
काश सहेज सकता
बना लेता सजिल्द पुस्तक
रखता गुलाब उन पन्नों पर
जो सुगंध से भर देते हैं मुझे
इस जून की कड़ी दुपहरी में
स्मृतियों को अंकित कर लेता
अपने चारो ओर फैली वायु मेँ
और हाथो को फैला
समेट लेता अपने सीने में
एक लंबी सांस से
रोएँ रोएँ में समा जाती
इसकी मधुर शीतलता
इस जून की कड़ी दुपहरी में
सुधियों को तान लेता
छतरी नुमा
ढक लेता खुद को
इसके तले
इस जून की कड़ी दुपहरी में
स्वजनों से जुड़ी अनुभूतियों को
कर लेता आत्म सात
बिल्कुल ऐसा
जैसे बांसुरी की तान में मधुरता
जल की हलचल में तरंग
कोयल की कूक में मिठास
इस जून की कड़ी दुपहरी में ।
– अवधेश सिंह