जूड़ौ-जूड़ौ सब लगे
जूड़ौ-जूड़ौ सब लगे, चित्त ठिकानों नायँ ।
घूँट एक पानी पियें, लगैं दाँत ठन्नायँ ।।
लगैं दाँत ठन्नायँ, सपरवै जी नैं होवै ।
घर कै सब खिसयात, घमौंरी टैम न खोवै ।।
कह दीपक कविराय,कुकर्रव बारौ-बूढ़ौ ।
लहरा चलै तुसार, लगै सब जूड़ौ-जूड़ौ ।।
दीपक चौबे ‘अंजान’