जुल्म
जुल्मों से भरी इस मुल्क में
छल, कप्टी, पापी, अन्यायी
इन सबों से भरी है ये सृष्टि
अच्छे को भी बुरा दिखा देती ।
इस दुनिया में जुल्मों का ही,
पापों का ही प्राधान्य जग में !
कुछ पल के लिए उत्तम भी,
अधम बन जाता है जग में ।
जुल्मों का बहुलता बढ़ता जब
अच्छे को भी झुकना पड़ जाता
कुछ समय बाद उनकी ही जय !
अक्सर अच्छे भी दिखने लगते बुरे।
जुल्म करने वाला विरुद्धाचरण को
सदा ही रहता मृत्यु का भय उसे
जैसे को तैसा होता इस दुनिया में
अश्वखुरा का परिणाम होता वहीं ।
जुल्म कब तक करेगा पपिष्ठ
आखिर तय उनका भी अंत
कब तक सता पाओगे हमें ?
तुम्हारा अंत तय है जगत में ।