जुम्मे की नमाज़
‘सुरक्षा’ व ‘शांतिपूर्ण’ माहौल में
सम्पन्न हुई
जुम्मे की नमाज़
सुर्खिया बनने लगी हैं,
चौथे स्तम्भ की
कहते है यह रहम का दिन है
फिर कैसे ?
बेरहम हो सकता है
रहम का यह दिन.
कहते हैं
अल्लाह ने
इस दिन बनाया था
‘आदम’ को
तो क्या ?
इसी खौफ़ प्रकटन के दौर,
पारस्परिक संदेह, अर्दन
और ‘डर’ के लिए
ख़ुदा ने-
इस पाक़ दिन को मुक़र्रर किया था.
‘डर’ का साम्राज्य
अन्दर भी पसरा है,
और बाहर भी.
इस ‘डर’ का नियंता कौन है ?
जो निडर हो,
रिश्तों को
तार – तार करने की कोशिश कर रहा है.
‘हम भारत के लोग’
के सशक्त किले पर
रख अपनी नापाक छेनी
‘डर’ के हथौड़े से प्रहार कर रहा है,
और अपने
‘फूट डालो’ के व्यापार को
नित नए कलेवर में
चमका रहा है.
०००
वह कौन है ?
जो ‘शांति’ के अग्रदूतों की भूमि को
बेहिचक, बेख़ौफ़
ललकार रहा है,
भर आए घावों को
कुरेद-कुरेद कर
‘नमक’ छिड़कने का
अदृश्य कोशिश कर रहा है.
वह कौन है ?
जो ‘हिन्दू – मुस्लिम – सिख – इसाई’
आपस में भाई-भाई
के अटूट बंधन को
धीरे-धीरे खोल रहा है,
और पेश कर रहा है
‘पाक’ होने का दावा.
आने वाली पीढ़ियाँ
हमें किस रूप में
करेंगी व्याख्यायित ?
प्रार्थना स्थलों को भी,
अशांत करने वाले
कथित सभ्य समुदाय के रूप में
या फिर-
आपस में कट मरने को आतुर,
असभ्य वनचर के रूप में.
रुको !
ठहरो !!
और मंथन करो,
भेड़-चाल के पथिक न बनो
‘शांतिदूत’, ‘अग्रदूत’, और ‘पथ-प्रदर्शक’ जैसी
ऐतिहासिक छवियों को
बेमौत न मारो,
यह कुचेष्टा
फिर ‘बर्बर’ होने का तमगा देगी
और हमें
‘आतंक’ के व्यापार को
नया जामा पहनाने वाले,
एक आतताई के रूप में
इतिहास में दर्ज करा देगी.
(1 फरवरी 2020)