जुबां से कभी जो न बोला गया है।
122……122……122…..122
जुबां से कभी जो न बोला गया है।
वही दर्द ग़ज़लों में गाया गया है।
हृदय के जो उदगार बाहर न निकले,
उन्हीं को तो गाकर सुनाया गया है।
अभी ज़ख़्म रिसने हुए बंद यारो,
उन्हीं जख्मों को फिर कुरेदा गया है।
खुदाया मुझे और अब गम न देना,
नहीं दर्द अब तक पुराना गया है।
करोड़ों का जो ये हुआ है हवाला,
गरीबों के मुँह का निवाला गया है।
जो दुनियां के लब पे हैं अफ़साने यारो,
हमें बोलने से भी रोका गया है।
हुए पल्लवित और पुष्पित शजर वो,
जिन्हें प्रेम से मिल के सींचा गया है।
……..✍️ प्रेमी