जुबां का ज़ायका आएगा गर दे दो हमें रविवार
दिल भी मेरा रोया ख्वाईशें रोती जार जार
बदहवास जिंदगी में खो गया मेरा रविवार
सीने में दफ़न चाहतें कहै,कैसे शुक्रिया करूँ
स्वहित हेतु काट काट खाये है हमारे त्यौहार
भुखे नँगो की बस्ती लगती अब संसद हमारी
ओढ़े बनावटी चेहरे नेता,राजनीति का व्यपार
खो गई हास्य क्रीड़ा अजीब मानवीय सरंचना
विचलित कर देगा ह्रदय करुणामय क्रंदन यार
जिसे ज़हर को पीने की आदत पढ़ गई यहाँ पे
कैसे आवाज बुलन्द करें वो गला अपना फाड़
हम भी चाहते रूप मनोहर बच्चों के देखा करें
मदमस्त होकर आए वो आरती मेरी देने उतार
झमाझम बारिश की बूंदे उसके तनपर पर गिरे
सोंधी खुशबू लेकर आये हवा उसकी मेरे द्वार
आँखें मूंद लूं तो चूप्पी तोड़ें बिस्तर मेरा मुझसे
पूछता क्या मिला तुझे अपनी इच्छा को मार
चाह था क्या एक फौजी की जिंदगी में तुमने
घुटन और कचोट की छूटता तेरा घरपरिवार
पोलिस की जिंदगी में बेचिराग दिल की गली
ए जिंदगी ढूंढती तुझे बता कहाँ तेरा विस्तार
बेनाम सी जुस्तुजू फौजी और पुलिसवाले की
बरसती आँखें कहती देना हमारे तीज त्यौहार
करते कड़ी मेहनत जूझते हर वक़्त जिंदगी से
बहतें एहसास और जज़्बात समझलो सरकार
सारी इच्छाये इक किनारे करकर मांगते तुमसे
जुबाँ का जायका आएगा देदो गर हमें रविवार
जुबां का जायका आएगा
अशोक सपड़ा हमदर्द
9968237538