” जुदाई “
हाथों में से हाथ छूट गया
और हमें खबर भी ना हुई…!
तुमसे हमारा दिल टूट गया
और तुम्हें आवाज भी ना आई…!!
बिन मौसम बरसात हो रही है
पता नही ऐ कैसी आँखों ने झडी लगाईं…!
ठहरती नही सावन की कोई भी बेला,
हम पर अब पतझड़ कि बहार आईं…!!
खामोशी का चल रहा है आलम अब जीवन में,
पता ही नही चला कब हमारी जुबां गई…!
सब कुछ बिखर कर रह गया,
जब मौहब्बत अपने विलोम शब्द का उच्चारण कर गई…!!
ना जाने किस मोड़ पर अब जिन्दगी लाई
चारों तरफ़ हमारे बस तन्हाई ही तन्हाई…!
सीने में दिल है धड़कन भी चल ही रही है
मगर जीने की वजह अब तक ना आईं…!!
तुम्हें इतना भी एतबार नही, तुम्हारे
दो पल के इश्क़ के लिए हमारी सारी जिन्दगी गई…!
कहा से लाऊँ दोबारा जीवन में चाहत,
चाहत की सभी सीमाएं तो तुम पर है लुटाई…!!
आसमां भी टूट रहा है जमीं भी पिघल रही है,
लगता है प्रकृति ने हमारे दर्दो कि कोई दवा बनाई…
हवाएँ भी चूप है नदियाँ भी थमीं है,
पता नही किस दुनिया में हमें ऐ जुदाई आईं…
लेखिका- आरती सिरसाट
बुरहानपुर मध्यप्रदेश
मौलिक एवं स्वरचित रचना