जुदाई तड़पा रही है
है सावन जुदाई भी तड़पा रही है,
ये बारिश भी बिजली सी चमका रही है
तेरे जब भी आते हैं आगोश में हम
ये दिल की तमन्ना बढ़ी जा रही है
है नीरवता फैली ज़मीं से गगन तक
ये स्मृति भी आग धधका रही है
तेरी याद की बदलियाँ छा गई हैं
मेरी लट ये काली खुली जा रही है
किसी ने है लूटा मुझे कह के अपना
तेरी मित्रता दिल को धडका रही है
चले क्यू नही आते हो पास मेरे
मधु चूड़ियाँ भी तो खनका रही है