जुदाई का एहसास
ये दीवार जो दरमियाँ,
दीदार न तेरा करने दें।
एक झलक मिल जाये तो,
दिल में उसकी भरने दें।
आँखों को समझाया कितना,
उस तारे की चाह न कर।
छू न पाया कोई जिसे,
उसकी फिर तू आह न भर।
मेरी बात न माने ये तो,
दुश्मन बन के बैठी है।
तेरी एक झलक पाने को,
देखो कब से रूठी है।
पानी पानी हो करके,
याद ये तुझको करती है।
स्वागत में तेरी ये देखो,
साफ़ ये खुद को करती है।
प्रदीप कुमार गुप्ता (स्वरचित मौलिक)