जुग जुग बाढ़य यें हवात
जुग जुग बाढ़य यें हवात
सावित्री सम पतिव्रता,
होय अचल येंहवात।
खुश रहो आनन्द रहो
जुग जुग बाढ़य येंहवात
खुश रहो, आनन्द रहो
शौभाग्यवती हो बेटी।
येंहवात तुम्हारा बना रहे
सुहाग वती रहो बेटी।।
पति तुम्हारा दीर्घायु रहे
बना रहे सुहाग।
बांह भर चुड़ीयां,मांग सिंदूर
बना रहे श्रृंगार।।
जुग जुग बाढ़य येंहवात तुम्हारा।
यह आशीष हमार।
कवि विजय का आशिष है
सुखी रहें परिवार।।
डॉ विजय कुमार कन्नौजे अमोदी आरंग ज़िला रायपुर छ ग