जुगनू और आंसू: ज़िंदगी के दो नए अल्फाज़
जुगनू रात में उड़ा करते हैं,
आंसू वादियों में बह जाते हैं!!
जुगनू चमकते हैं अंधियारे में,
आंसू दर्द की कहानी सुनाते हैं!!
जुगनू संगीत सुनाते हैं रातों में,
आंसू अल्फाज़ गुनगुनाते हैं!!
जुगनू चमकते हैं आसमान में,
आंसू प्यार और यादें बहाते हैं!!
ज़िंदगी बनी चराग़ों सी,
जुगनू रौशनी बिखेरते हैं!!
आँसू बनी सुहानी बूंदें सी,
उदासी छोड़ते जाते हैं!!
उम्र भर की ख़्वाहिशें समेटे,
जीने की आरज़ू करते हैं!!
मुसाफ़िरी के लम्हों को भुला,
जीने की राह में टहलते हैं!!
ज़िंदगी ख़्वाबों में बसती है,
चंद ख़्वाहिशों की छांव में,
आंखों की झुकी रौशनी, बस
दिल की धड़कनों से ग़ुजरते हैं!!
जुगनू और आंसू दोनों,
सुनाते हैं प्यार की दास्तां,
दरिया-ए-दिल में लहरों सा,
मुसलसल बढ़ते जाते हैं!!
जुदा है दोनों का वजूद अपना,
ज़िंदगी को इक नई साज़ बनाते हैं!!
रोशनी छिपाते हैं, जुगनू ख़ुद से,
आंसू साथ लेकर ग़म भुलाते जाते हैं॥
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©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”
बिलासपुर, छत्तीसगढ़