जी रहें हैं तुम बिन इसे सज़ा ही समझो………………….
जी रहें हैं तुम बिन इसे सज़ा ही समझो
ज़ख़्म अभी तक भरा नहीं हरा ही समझो
चैन-ओ-सुकून जाता रहे दर से दिल के
ऐसी मोहब्बत को तो बला ही समझो
छिपा रहा है कोई किरदार तेरा
देर नहीं बस अब परदा उठा ही समझो
चाहा तुमको लाख मगर न पाया हमने
और क्या कहें क़िस्मत का लिखा ही समझो
दीवार उठाई है दरमियाँ उसने जो
महल मिरे ख्वाबों का गिरा ही समझो
तू ही दुनियाँ मेरी आरज़ू बस तेरी
तू साथ नहीं तो मुझको लुटा ही समझो
बैठे थे दबाए इक उम्र से हम हाये
कारवाँ दर्द का बस ‘सरु’ चला ही समझो
सुरेश सांगवान ‘सरु’