जी रही हूँ फिर से दिन बचपन वाले मैं
भूल गई हूँ अब वो दिन पचपन वाले मैं
जी रही हूँ फिर से दिन बचपन वाले मैं
तेरी हँसी मुझे सौ बहार लगती है
हर इक अदा बेहद ख़ुशगवार लगती है
सिवा हुई जीने की हसरत देखकर तुझे
चाहती हूँ दिल अब धड़कन वाले मैं
जी रही हूँ फिर से दिन बचपन वाले मैं
भूलकर हर चीज़ खिलौने ले आती हूँ
सामान जब कुछ लेने बाज़ार जाती हूँ
देखती हूँ तुझमें कान्हा की सूरत
मटके रखती हूँ भर के मक्खन वाले मैं
जी रही हूँ फिर से दिन बचपन वाले मैं
ज़िंदगी की शाम के नज़ारे तुम ही हो
दुनियाँ में जीने के सहारे तुम ही हो
चहकते रहो हमेशा तुम महकते रहो
लगा रही हूँ बाग़ अब चंदन वाले मैं
जी रही हूँ फिर से दिन बचपन वाले मैं
भूल गई हूँ अब वो दिन पचपन वाले मैं
जी रही हूँ फिर से दिन बचपन वाले मैं
— —– सुरेश सांगवान ‘सरु’