*जी रहा हूँ*
जी रहा हूँ
नादान हूँ फिर भी चाहत की तमन्ना में जी रहा हूँ ।।
पता है फिर भी जाम हलाहल का भी पी रहा हूँ ।।
गरीबी का साम्राज्य फैला है मेरे इस कुनबे मैं जो।।
प्रगति होगी एक दिन इस अरमान से जी रहा हूँ।।
सुकून आँखों मैं नजर आयेगा तेरी भी कभी न कभी।।
इसलिये आज इस गम कि चादर को ही सी रहा हू।।
परिदों मैं छटपटाहट है शिकारी को देख आसपास।।
जाल ले उड़ेंगे उसके साथ की उम्मीद से जी रहा हूं।।
वक़्त विषम समता मैं बदल जाये तो कोई बात हो।।
कभी करवट बदले हालात ऐसी चाह मैं मनु जी रहा हूं।।
।।मानक लाल मनु ।।