जी रहा जिंदगी तुझ को नादान बनकर
जी रहा जिंदगी तुझ को नादान बनकर।
और तू रह गई एक ज़िंदान बनकर।
छीनने इन गरीबों के मुँह से निवाला
रहनुमा कुछ यहाँ आए भगवान बनकर।
जुस्तजू कुछ ख्’वाबो की रई जिंदगी भर
और फिर मर गई, दिल के अरमान बनकर।
जिंदगी तुम तो घर की हो छोड़ो ये बातें
मौत आओ कभी तुम तो मेहमान बनकर।
इश्क़ तुमसे हुआ तो समझ आया हमको
हिज़्र में दिल रहा तब से बे-जान बनकर।
मय नहीं पी मगर फिर भी हूँ मैं शराबी
रह गया ये मक़ा एक रिंदान बनकर।
हाथ रंगी मेंहदी किसी और नाम कि
खिल उठी हाथ में मेरी पहचान बनकर।