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15 May 2024 · 1 min read

मुक्तक

लगी होती है क्या दिल की इसे दिलबर ही समझेगा
ये तन्हाई का आलम मील का पत्थर ही समझेगा

ज़माना ये कहाँ समझेगा ये बेताबियाँ दिल की
नदी बेचैन है कितनी इसे सागर ही समझेगा

प्रीतम श्रावस्तवी

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