मुक्तक
लगी होती है क्या दिल की इसे दिलबर ही समझेगा
ये तन्हाई का आलम मील का पत्थर ही समझेगा
ज़माना ये कहाँ समझेगा ये बेताबियाँ दिल की
नदी बेचैन है कितनी इसे सागर ही समझेगा
प्रीतम श्रावस्तवी
लगी होती है क्या दिल की इसे दिलबर ही समझेगा
ये तन्हाई का आलम मील का पत्थर ही समझेगा
ज़माना ये कहाँ समझेगा ये बेताबियाँ दिल की
नदी बेचैन है कितनी इसे सागर ही समझेगा
प्रीतम श्रावस्तवी