जी करता है
Ek abodh balak
ढलती उम्र में मन हार के बैठ जाएं, ये तो जियालत होगी ।
चलो घर को फिर से सजाएं यही मोहब्बत होगी ।
मै कौन कहता हूं मन आत्मा को मार के जियो यारो ।
चलो आज फिर से सज संवर के यूं ही सरे राह टहल आएं तो किस्मत होगी । 🩷🩷
Ek abodh balak
ढलती उम्र में मन हार के बैठ जाएं, ये तो जियालत होगी ।
चलो घर को फिर से सजाएं यही मोहब्बत होगी ।
मै कौन कहता हूं मन आत्मा को मार के जियो यारो ।
चलो आज फिर से सज संवर के यूं ही सरे राह टहल आएं तो किस्मत होगी । 🩷🩷