जीवन
जीवन मे जो भी मिला,
निज कर्मों का खेल ।
जो किया सो पाया नर ने,
भले बुरे का मेल ।
जीवन में जो भी मिले,
सीखो उसे पचाना।
सबका यहाँ हिसाब है,
न करिये मनमाना ।
भक्ति पचाया न अगर,
अंदर सुख हो बंद ।
भोजन पचे न पेट में
देह की गति हो मंद।
पैसा पचे न यदि कहीं,
मन में बढ़े दिखावा ।
बात पचायेन पचे,
चुगली निंदा आवा।
प्रशंसा यदि सिर चढे,
तो बढ़ जाये घमंड ।
राज पचाये न पचे,
राजा हो उद्दण्ड ।
दुख कहीं ज्यादा होय तो,
बढ़ती बहुत निराशा ।
सुख पचाये न पचे,
पाप होय बेतहाशा ।
नहीं कथन कतई मेरा,
संतो की हैं ये बात।
कदम कदम चलो परख कर,
गुनिए मेरे तात।
सोच समझ जीवन जिओ,
रहो राम की ओट ।
यदि कहीं चले कुमार्ग पर,
पड़े काल की चोट