जीवन
जी
आने
प्राण
होते हैं,
जीव में,
आता हैं
धरा धाम
जीने को
जीवन।
जीव का ये
जीवन
समझो
सघन वन
दुर्गम पथ संग
कहीं कहीं निर्जन।
वन ऐसे
समझो
सुख और दु:ख
हैं संग
छोड़े आत्मा देह
होता तब
जीव, न
इस प्रकार
जी..
जीव..
जीवन..
मिलकर है
जीवन।
रामनारायण कौरव