जीवन
कठीन परिश्रम के तप से भरा,
जिसके जीवन में राह रहा।
जिंदा वही है इस धरती पर,
जो अभी तक जाग रहा।
शक्ती स्वयं जगती कहां है,
जगाती उसको दृढ़ निश्चय।
स्वयं जगती है धरा पर ,
दोष, अवाहेलनाओ की प्रलय ।
पर जो बढ़ाया दृढ़ निश्चय धरा पर,
वो सदा जीवित रहा है,।
जो सोते रहे मृदुल शयन पर ,
कहो आज उनका अवशेष कहाॅं है।
सौर्य, धैर्य का जो यहाॅं पर ढाल गढ़ा है,
निर्बरलता,अविवेकता से जो पड़े बड़ा है।
सत्य का जो रथी हुआ है ,
परहित का जो मुख्य प्राण बना ।
जिसके भुजा में क्षमा,दया हो ,
वो हि सच्चा भगवान बना ।
जय, पराजय की ना हो इच्छा जिसमें
वो हि समुचित ज्ञानी है,
भय, प्रलोपन और रहस्य में जो ढला है
वो केवल अभिमानी है।
जिस मनु में ज्ञान अनंत हो,
वो सारे वर्णों से बड़ा है।
ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैष, क्षुद्र
ये तो उसने ही गढ़ा है ।
अगर भरा हो ज्ञान मनुष्य में
तो उसमे अभिमान नहीं,
बस बढ़ते रहिए इस महासमर में
इससे बड़ा सम्मान नहीं ।