जीवन
जीवन की सबसे महँगी चीज़ है..आपका वर्तमान..!
जो एक बार चला जाये तो फिर……
पूरी दुनिया की संपत्ति से भी हम उसे खरीद नहीं सकते!
जितना कुसूर है, ‘मन’ का है! शरीर बेचारे का क्या कुसूर ? और सजा हम शरीर को देते हैं!
इसलिए शरीर को सजा देने से कोई फायदा नहीँ, सजा तो मन को देनी है और मन को सजा देने का सबसे अच्छा तरीका है, कि इसे “सुमिरन” में लगाया जाए कुँए में उतरने के बाद बाल्टी झुकती है!
लेकिन,,, झुकने के बाद भर कर ही बाहर निकलती है… जीवन भी कुछ ऐसा ही है, जो झुकता है वो,,, अवश्य कुछ न कुछ लेकर ही उठता है!
यहीं जिंदगी हैं.. !!
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