” जीवन “
” जीवन ”
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यायावार खानाबदोश है बंजारा है जीवन
पग क्षण यहां है पग क्षण वहां है अपनापन
अनंतकाल है दिग्दर्शन जिसमें उलझा है जीवन
मुक्त स्वच्छंद है बहती जैसे त्रीपथ-गामिनी पावन।
मां के हृदय से शुरू हुआ वसुधा में है अवसान
रंग – बिरंगे पंखों संग शून्य में है करता उड़ान
घोर अमावश कभी पूर्णिमा समय से है अनजान
मनसा वाचा कर्मणा होती जीवन की है पहचान ।
उदय रश्मि के साथ चले संघर्ष है उसकी जान
खोखले वसूलों संग जीता है हर घर इन्सान
कभी अर्श पर कभी फर्श पर रहता है इन्सान
फिर भी ना जाने क्यूं दंभ भरता है इन्सान।
झूठा जन्म सत्य है मृत्यु अटल है ये गुणगान
टाले से भी ना टले लिखा है जो विधि -विधान
यह तेरा वह मेरा है सोच ऐसा होते है हलकान
गुण के सागर महिमा नागर सबके है भगवान ।
जाति-पाती का वर्ण विचार जिसमें बटे है इन्सान
कुत्सित प्रथा वाह्य आडम्बर जिसमें घिरा है इन्सान
मोह माया के बंधन में फिर भी जकड़ा है इन्सान
कटी पतंग जीवन फिर भी उड़ान भरता है इन्सान।
——— सत्येन्द्र प्रसाद साह (सत्येन्द्र बिहारी)———