जीवन
चलो आज बेताब मन को थोड़ा विराम दे, बेज़ार धड़कनो को थोड़ा आराम दे,
भूल के रस्मे दुनिया की ,खुद को बचपन वाली वो शाम दे।।
भीड़ है इर्द-गिर्द मेरे, होके इस से जुदा दिल को फिर से कोई काम दे।
उठती है उंगलियाँ उठने दो,हवा फरेब की भी बहने दो,
दुनिया की रिवायत है ये,खुद को एक मुकम्मल अंजाम दे।।
रिस्तों के ताने बाने में उलझा इन्सान, कम होती नज़दीकियाँ , होके अलहदा फिर से खुद को सम्मान दे।
ये दुनिया तमाशबीनों की बस्ती है, तेरे अन्दर भी मस्ती है
छोड़ के फिक्र तमाम जीवन को एक नया आयाम दे।