जीवन
जीवन बना एक मरीचिका इच्छाओं का छौर नही,
खुद ही खुद मे सब उलझे है, दोषी स्वयं से बडा कोई और नही।।
अब क्या है,आगे क्या होगा जीवन खेल खिलाता है,
पल पल ,प्रतिपल समय का पहिया अपना असर दिखाता है ।
जीवन न रुकता,चलता अविरल,सांसो में भरा है एक गरल,
जज्बात यहाँ बेमोल बने,,, शायद जीवन से है मृत्यु और सरल।।