जीवन
कभी चाल
कभी हाल
तो कभी जीवन
होता है बदहाल
हाँ एक सन्तोष
रह जाता है
अनुभव भी तो
जीवन ढलने पर
हो पाता है
जीवन बगिया में
हैं खिलते कभी
आनन्दरूपी अनगिनत प्रसून
तो कभी कष्ट रूपी कंटकों से
घायल होकर ही
जीवन हो लेता है
विलीन होकर न्यून।।