जीवन है धूंआ धुआं
काहे का
अभिमान करे
तू इन्सान
एक दिन
भस्म हो जाएगा
तू इन्सान
रह जाएगा
तेरी नेक- नियती
यहाँ
लेते है नाम
इज्जत से हे राम
जला देते है
रावण तेरा
घमंडी नाम
जल जाये अहं
तो हो जाती राख
रह जाता नहीँ कुछ
स्वाहा हो जाता
श्मशान घाट
शिव है सुन्दर
शिव है मनोरम
लिपटाये है
राख भस्म
बताये है यही
जीवनदर्शन
भूलो मत
अंत है जीवन
पंचतत्व में
होगा विलीन
ये जीवन
करो नेक
ईमान के काम
” संतोष ”
रखो सदा साथ
ये भस्म
सुखमय जीवन
बनाओ रस्म
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल