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27 Jan 2024 · 1 min read

” जीवन है गतिमान “

गीत

झुक गए तन मन दोनों भैया ,
झुके वही मतिमान !
दो पल का ठहराव भले दे ,
जीवन है गतिमान !!

बचपन में झुकना सीखा था ,
खूब नवाये शीश !
तरुणाई की ओर बढ़े तो ,
फिर जाना क्या ईश !
शिक्षा के सोपान चढ़े तो ,
पाया अपना मान !!

उपलब्धि की ओर बढ़े तो ,
झुकते देखे माथ !
अपने ही क्या और पराये ,
देने आए साथ !
तना रहा मस्तक सीना भी ,
पाए जब यशगान !!

सच को भी हम रहे नकारे ,
बदल गए जो ढंग !
ज्यों गिरगिट को देख बदलता ,
गिरगिट अपना रंग !
गिरता है चरित्र नीचे तब ,
बढ़ता है अभिमान !!

कस बल काया के ढीले हैं ,
बदला बदला दौर !
अपने भी अब सुने न अपनी ,
बदलें इत उत ठौर !
सुमिरन , चिंतन , मनन ,नमन है ,
बन ले जरा सुजान !!

स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्य प्रदेश )

Language: Hindi
2 Likes · 1 Comment · 246 Views

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