” जीवन है गतिमान “
गीत
झुक गए तन मन दोनों भैया ,
झुके वही मतिमान !
दो पल का ठहराव भले दे ,
जीवन है गतिमान !!
बचपन में झुकना सीखा था ,
खूब नवाये शीश !
तरुणाई की ओर बढ़े तो ,
फिर जाना क्या ईश !
शिक्षा के सोपान चढ़े तो ,
पाया अपना मान !!
उपलब्धि की ओर बढ़े तो ,
झुकते देखे माथ !
अपने ही क्या और पराये ,
देने आए साथ !
तना रहा मस्तक सीना भी ,
पाए जब यशगान !!
सच को भी हम रहे नकारे ,
बदल गए जो ढंग !
ज्यों गिरगिट को देख बदलता ,
गिरगिट अपना रंग !
गिरता है चरित्र नीचे तब ,
बढ़ता है अभिमान !!
कस बल काया के ढीले हैं ,
बदला बदला दौर !
अपने भी अब सुने न अपनी ,
बदलें इत उत ठौर !
सुमिरन , चिंतन , मनन ,नमन है ,
बन ले जरा सुजान !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्य प्रदेश )