जीवन हुआ है रूठा रूठा सा
जीवन हुआ है रूठा रूठा सा
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जीवन हुआ है रूठा रूठा सा,
सांसों का साथ टूटा टूटा सा।
बंदिशों में है जीना कैद हुआ,
सब्र का है बाँध टूटा टूटा सा।
बेसहारा हुए हैं अपने घर में,
सहारों का हाथ टूटा टूटा सा।
सहरों में रोशनी गुम सी हुई,
किरणों का बिंब टूटा टूटा सा।
खुली हवा में है दम घुटने लगे,
श्वासों का दामन टूटा टूटा सा।
परिंदे कैद से हैं आजाद हुए,
इंसानों का तंत्र टूटा टूटा सा।
हैवानियत की हदें हैं पार हुई,
ईश्वर का प्रताप टूटा टूटा सा।
मनसीरत बातें करता सच्ची,
दिखता है दिल टूटा टूटा सा।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)