जीवन संवार ले
हर कोई देखो आज के दौर में
उम्मीद का दामन थामे बैठा है
स्वयं तो कुछ करना ही नहीं है
आशाएं औरों से लगाए बैठा है
जीवन जीना खुलकर जीना
बातें बेमानी सी लगती हैं
हर इंसान इस दुनिया में
बस घात लगाए बैठा है
सच कहने से बचता है क्यूं
सच सुनने से क्यूं कतराता है
ओढ़े आवरण झूठ का क्यूं
अलग दुनिया सजाए बैठा है
झूठी शान की खातिर काहे
जीवन अपना तज रखा है
छोड़ ये छद्म से रिश्ते नाते
क्यूं इनका दामन थामें बैठा है
मिला है अवसर इस जीवन को
हाथों से अपने संवार ले
नहीं मिलेगा मौका फिर से
क्यूं अवसर गंवाने बैठा है
संजय श्रीवास्तव
बालाघाट ( म प्र)
06-04-2022