जीवन संवाद
एक दिन चींटी ने मधुमक्खी से कहा ,
तुम्हारे और मेरे जीवन का लक्ष्य परिश्रम है ,
मैं परिश्रमरत् संघर्षपूर्ण जीवन निर्वाह करती हूं ,
तुम भी जीवन भर परिश्रम कर मधुसंचय करती हो ,
परंतु तुम मानव को उस मधु को दान कर , उसी के स्वार्थी हाथों मृत्यु को वरण करती हो,
मानव की स्वार्थ की पराकाष्ठा तो तब प्रतीत होती है ,
जब वह निरीह गाय जो उसे मातृवत् दुग्ध दान कर पोषित करती है ,
उसको भी मृत्युदंड देकर उसका भक्षण कर लेता है ,
वह तो प्रत्येक जीव के जीवनाधिकार को छीन उसे नष्ट कर भक्षण कर लेता है ,
वृक्ष जो उसके वातावरण को प्रदूषित होने से बचाकर उसके लिए प्राणवायु का संचार करता है ,
स्वार्थ प्रेरित उसे भी नष्ट कर पर्यावरण असंतुलित करता है ,
यहां तक कि नदी जिसे वह माता कहकर पूजता है,
उसे भी अपने स्वार्थ वश दूषित करने से नहीं चूकता है ,
पहाड़ों को भी स्वार्थवश असीमित खनन से नष्ट कर उसने विनाश लीला मचा रखी है ,
यहां तक कि आसमान में भी उपग्रह छोड़कर अपने आधिपत्य की धाक जमा रखी है ,
यह केवल नाम मात्र का मानवताविहीन
छद्मवेषी मानव है ,
परंतु इसके अंतः में छुपा
क्रूर दानव है ,
जो इसके कर्मों को
निर्धारित करता है ,
जो इसे नित नवविनाश आयामों को
खोजने बाध्य करता है ,
तथाकथित मानव विकास का राग अलाप कर सर्वनाश की ओर अग्रसर हो रहा है ,
और स्वर्ग सी सुंदर इस वसुंधरा को
रसातल की ओर ले जा रहा है ।