जीवन संगिनी
पहली बार मेरे घर मे पड़े
आपके कदम,
महक उठा था मेरा घर
आंगन।
तुमको जीवन संगिनी के
रूप में पाकर,
धन्य हो गया मेरे जीवन।
पाकर मैंने तुम्हारा साथ ,
पा लिया ये जग संसार।
तुम बिन था मैं अधूरा सा,
हर खुशी तुम्हे दु जिंदगी का।
तुम रोशनी हो
मेरे जीवन की,
तुम प्यारी हो कुसुम सी।
अपना रिश्ता है जग में प्यारा,
हाँ तुम्हीं तो हो मेरे जीने का
सहारा।
तुम मेरी काव्य हो तुम मेरी
रचना हो,
तुम मेरा अस्तित्व हो तुम
मेरी प्रेणना हो।
मेरे जीवन में आलोक
भरने वाली,
मेरी जीवन संगिनी अर्चना हो…
मेरी जीवन संगनी अर्चना हो।
(स्व रचित) ……..……आलोक पांडेय गरोठ वाले