जीवन यात्रा
जीवन यात्रा ईश्वर की थाती, ये घटती है न बढ़ती है
जितनी जिसे मिली है ज्योति, बस उतनी ही जलती है
जितनी जिसे मिलीं हैं सांसें, बस उतनी ही चलतीं है
जीवन ज्योति अगर बुझे तो, फिर जलाए न जलती है
जितना भरा हो तेल दिए में, बाती उतनी जलती है
जीवन की इस यात्रा को, कोई लंबा सफर बताता है
कोई कहे क्षणभंगुर इसको, ये अल्पकाल में जाता है
जन्म और मृत्यु की इस दूरी को, कोई कष्टों से भरीकहें
खुशियों का संसार बता, कोई ईश्वर का वरदान कहे
परमपिता तुम ही बताओ, जीने की कोई राह दिखाओ
परमपिता हंसे फिर बोले, अरे हो मेरे निर्मित चोले
मैंने जब है तुम्हें बनाया, स्वयं आकर जीना सिखलाया
तेरी यात्रा सुखद बनाने, हर संभव सामान बनाया
तेरे खातिर बंदे मैंने, इसी धरा पर स्वर्ग बनाया
यात्रा तेरी सफल बनाने, सब जीवों का सम्राट बनाया
बुद्धि कर्म और त्याग तुम्हें दे, सबसे बड़ा दिमाग बनाया,
तुम्हें सर्ब संपन्न बनाया
शक्ति मैंने दी तुमको इतनी, सबका साथ तुम निभा सको,
जीव नाम को साथ में लेकर ,मार्ग हो अविरल ना कभी थको
तेरे कारण बना राम मैं, तेरे कारण कृष्ण बना
तेरे कारण बना मैं नरसिंह, तेरे कारण ही बाराह बना
तेरे कारण बना मैं ईश्वर, तेरे कारण ही अल्लाह
तेरे कारण बना सद्गुरु, तुझे ही पकड़ा फांसी का पल्ला
तेरे कारण मेरे बेटे कई नाम मिले हैं मुझको
जब तुम जैसा मुझे पुकारो, हाजिर हूं मैं तुझको
मैं तो एक हूं, नाम अनेकों, तुझे राह दिखलाते बेटे बदले रूप अनेकों
मानवता जब जब बिखलाई,
स्वर्ग की घड़ियां रास नआई
मानवता का पोषण करने, राह सभी को दिखलाई
मैंने तुमको इस योग्य बनाया, तुम हर उलझन से सुलझ सको
स्वयं आकर मैंने सिखलाया, न को हां में बदल सको
कष्ट कई इस आते हैं पथ में, मुझको है इंकार कहां
कष्ट सहे बिन जीवन में खुशियों का अधिकार कहां
सुरेश कुमार चतुर्वेदी