जीवन में भाषा की लड़ाई !
जीवन में भाषा को लेकर भी बहुत असमंजस की स्तिथि बनी रहती है। जिसे अंग्रेजी नहीं आती वो अंग्रेजी की बहुत इज्जत करता है और उसे सीखने की कोशिश में लगा रहता है। इसमें कोई गलत नहीं। लेकिन समस्या की शुरुआत तब होती है जब हम अपनी इस अंग्रेजी न बोलने को अपनी कमजोरी बना लेते है और दुसरो से खुद को बहुत पीछे मानते है। बेवजह ही ऐसे लोगो की इज्जत करनी शुरू कर देते है जो अच्छे से अंग्रेजी बोल लेते है। जब हम ऐसा करते है तो अंग्रेजी को भाषा नहीं उसे हम एक समस्या की तरह भी लेने लग जाते है और अपनी असफलता का एक कारण इसे भी बना देते है की मै तो सही से अंग्रेजी बोल नहीं पाता इसीलिए मेरे साथ ऐसा हुआ। लेकिन मेरा मानना है की ठीक है अंग्रेजी न आने की वजह से कोई मौका हाथ से निकल गया लेकिन ऐसे कई अवसर हमें मिलते है जहाँ हम अपनी कौशल से या फिर कह सकते है अपने आत्मविश्वास से , अपने निर्भय चरित्र से , अपनी बात समझाने की क्षमता से , सुनने की क्षमता से वो कर सकते है जो एक अंग्रेजी बोलने वाला न कर पाए।
भाषा को लेकर कुछ ऐसी घटनाये है जो मै आप सभी से साझा करने जा रहा हूँ। बात उस समय की है जब दादी बिहार के छोटे से गाँव से निकल कर दिल्ली आयी और मै, पापा और दादी एक साथ रहने लगे। दादी ने शहर में देखा की सब हिंदी में बोलते है लेकिन उनकी भाषा तो मैथिलि थी ऐसे में कौन उनकी बात को समझ पायेगा तो उन्होंने टूटी फूटी हिंदी बोलनी शुरू कर दी। दादी की सबसे अच्छी आदत थी की वो सब कुछ सीख लेना चाहती थी 70 की उम्र में भी और इस आदत को मैंने अपने जीवन में अपनाया है। मैंने एक दिन उन्हें देखा की किसी से बात कर रही थी टूटी फूटी हिंदी में लेकिन जो वो दिल से बोलना चाहती थी नहीं बोल पा रही थी हिंदी की वजह से। मै उनके पास गया और मैंने बोला दादी आप अपनी भाषा मैथिलि में ही बात करो और खुल के दिल की हर बात बोलो। कुछ तो मेहनत सुनने वाले को भी करने दो आपकी बात समझने के लिए। उस दिन के बाद से उनके जीवन में जो भाषा की लड़ाई थी वो ख़तम हो गयी। जिससे भी मिलती थी और बात करती थी , बिना रुके अपनी बात अपनी मातृभाषा में करती थी और बहुत खुश होती थी।
एक घटना है जब मेरी पत्नी ने एक अमेरिकन कंपनी में काम करना शुरू किया था तब वो अपने काम के बारे में बता नहीं पाती थी और सवाल के जवाब होने के बाद भी अंग्रेजी अच्छे से न बोलने के कारण चुप ही रहती थी। ऐसा 2 से 3 बार हुआ फिर मैंने बीच मीटिंग में बोला की आप सभी से अनुरोध है की क्या आप अपने सवाल हिंदी में पूछ सकते है ताकि ये आपके सभी सवाल का जवाब हिंदी में दे सके। जहाँ सभी लोग IIT , IIM से पढ़े हो जब उनका जवाब आया जरूर हिंदी में बात कर सकते है और अब उनसे सवाल हिंदी में ही पूछा जाता है और वो जवाब भी देती है। इसका इतना असर हुआ की उन्होंने अपने काम को भी दिल से समझना शुरू कर दिया और उनका आत्मविश्वास कई गुणा पहले से बढ़ चूका है। अब वह हमेशा ही तैयार रहती है अपने काम से सम्बंधित सवाल के जवाब देने का और अपने करियर में अच्छा कर रही है। साथ में अंग्रेजी भी सीख रही है।
जिस समय मै दिल्ली आया तब मै 10 वर्ष का था और अब दिल्ली में 21 साल हो गए फिर भी अपनी मातृभषा मैथिलि बहुत अच्छे से बोलता हू। घर में माँ पापा और भाई सभी से मैथिलि में ही बात करता हू। गाँव जाने पर हिंदी का इस्तेमाल न के बराबर ही करता हू। मै भी एक अमेरिकन कंपनी के लिए काम करता हूँ वहां जरुरत होती है तो अंग्रेजी भी बोल लेता हूँ। लेकिन कोई दिल से पूछे की कौन सी भाषा है जिसमे बोलना मुझे बहुत अच्छा लगता है तो जवाब होगा मैथिली।
भाषा का इस्तेमाल जरुरत के हिसाब से होनी चाहिए और किसी भाषा के न आने पर उसे समस्या की तरह नहीं लेना चाहिए। उस भाषा को जरूर सीखना चाहिए जिससे आप जीवन में और ज्यादा अच्छा कर सकते है लेकिन किसी भाषा की वजह से जीवन में पीछे रह जाना सही नहीं है।