जीवन-मृत्यु का संघर्ष “एक वानगी”
जीवन है संघर्ष पथ,
मृत्यु है,कटु एवम् अन्तिम सत्य।
जीवन और मृत्यु के मध्य,
दूरी है,एक अनिश्चित,
प्राणी,तय करता है जब यह सफर,
जब कभी पुरी होती है यह यात्रा,
और इस यात्रा के पडाव में,
जीने का वह संघर्ष, आता है जब सामने,
तो,फिर क्या क्या नही करता वह,
अपने अस्तीत्व को बचाने के लिए,
वह जीता है,अपनो के लिए,
अपने सपनो के लिए,
किन्तु समाज के लिए नही निकाल पाता है समय,
उसी समाज के लिए,जो देता है,हमे सुरक्षा का चक्र,हम नही करते उसकी कोई फिक्र,
क्योंकि हम अपने और अपनो तक ही सिमट गये,
दुसरों कि पीडा हमें,सताती नही,
उसके कष्टों का अहसास कराती नही,
हम क्यों द्रवित हो किसी के लिए,
क्या,कभी कोइ पसीजा है मेरे लिए,
बस यही सोच और यही है रिश्ता,
हम और हमारे बीच,का,
न हमें फुरसत है,किसी के जख्मो पर मरहम की,
और नाही,अपनी जरुरतो से कभी पार पा सके ,
बस इसी आपाधापी में कब समय निकल गया,
जीया था जिसके लिये,वह कब दूर हो गया,
रह गया वह अकेला ही,यह अहसास तब हो गया,
थक गया जब शरीर,मन भी तब थक गया,
इन्तजार सिर्फ अब उस पल का रह गया,
भाग रहा था,जिससे दूर ,वही तो अब पास है
ब्रह्मलीन का आया समय,जाना है इस संसार से
है समाना हर किसी को,मृत्यु के आगोश मे्ं।
आये हैं हम इस धरा पर,तो बोझ बन कर क्यों रहें,
कुछ करें अपनो कि खातिर,तो कुछ परोपकार भी करें,जायें जब भी हम इस वसुंन्धरा से,
तो,लोग सिसकीयां भरें,दें दुआएं,नव जीवन की,
जीवन को हम सार्थक करें।