जीवन बने मधुर
आत्मा को सुनिए सदा,करना हो जब काज।
भूलो जग आलोचना,मिलता तभी स्वराज।।
प्रथम त्याग की बात हो,द्वितीय फल उन्माद।
जैसे बोते बीज को,पौधा उगता बाद।।
पीर पराई देखके,हँसना मत तू मीत।
धूप-छाँव-सी ज़िंदगी,एक रहे न अतीत।।
प्रेम करो सदकर्म से,पाप नाश की राह।
अंत कटेगा तड़फ के,होगी सज़ा अथाह।।
प्रीतम चेतन शून्य क्यों,लुटे जहाँ अधिकार।
स्तब्ध रहे तुम देखते,लुटना फिर हर बार।।
प्रीतम रहना मौज में,सुख-दुख में चल तेज़।
गुलाब हँसता शूल पर,ख़ुशबू से लबरेज़।।
प्रीतम चक्की प्रेम की,कोमल करे कठोर।
कोयल कूके बाग में,लेता हृदय हिलोर।।
–आर.एस.प्रीतम
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