जीवन परिश्रम और आशाएँ
निर्जन नाम साथ हरे-भरे खेत – खलिहान,
ओर कुछ आडी – टेडी बस्तियों सा गाँव |
कुछ अकेले और मन संचित ह्रदय वाले,,
आशा के रहीम, फकीर ह्रदय का मुर्छाव |
कर्ज में पिढी- पिढी ओर आत्मज अर्पण,
बँटता रहता, रीढ की हड्डी सा बचा कुचा |
मन उज्ज्वल मन्दिर आशा उसकी माया,,
काया को न नसीब ह्रदय आशा का सच्चा |
मन तिनको से हटकर स्वयं न मर्जिला,
बहता जूझता रहता जैसे आशा उसकी नुर |
काया लिये रहता किरणें मानो उजली,,
जैसे रवि किरणें आती-जाती हैं सम नीर |
तटिनी उत्पल खिलता रिमझिम ह्रदय ,
आशा बहार हर्षोल्लास गडगहाहट लाता |
प्रयास, लक्ष्य, लग्न परिश्रम ओर सर्व,,
पर खेत-खलिहान तक सिमट रह जाता |
मग्न ह्रदय मनन कर अनुभव कहता,
खलिहान ब्याँज,पेट भरण पर कर्ज रहता |
काया- परिश्रम ओर तरफ ढह जाती,
काया कृपण में कर्ज लिये अटक रह जाता |
सहम जाता पर ह्रदय चिंगारी आशा ,
दिनकर कर्म की भावना ह्रदय को ले आता|
जुट जाता अपनी रफ्तार जिन्दगी में,
भौर हूई तो चल,संध्या को घर लौट अाता|
बस जीवन ओझल होने तक दोहरान,
स्वयं अर्पण कर्ज में संभव कर्जकार निह्रदय|
रणजीत कहत हैं जीवन वेदना से गुजरता,
जीवन-परिश्रम और आशाओ का ह्रदय |
रणजीत सिंह “रणदेव” चारण,
मूण्डकोशियाँ
7300174927