जीवन – पथ
दिग्भ्रमित पथिक ,
आवारा रास्ता ,
जीवन में जैसे ,
भटकाव ही भटकाव ।
कहां जाएं ,
किधर जाएं ,
न कहीं ठिकाना ,
न कहीं ठांव ।
चिलचिलाती धूप ,
तपती पगडंडियां ,
बदनसीब राहों में ,
न सुनहरी छांव ।
लम्बे – लम्बे मार्ग ,
दूर तक कहीं ,
शुष्क राह के सिवाय ,
दिखता नहीं गांव ।
मन कहता है ,
अब और न होगा ,
हमसे चलना ,
बहुत थक चुके पांव ।
किंतु भीतर से आवाज आई ,
तुझे चलना ही है ,
जब तक न मिले ,
सपनों का गांव ।
अशोक सोनी
भिलाई ।