जीवन पथ की ये कठिन डगर
जीवन पथ की ये कठिन डगर,
चलना इसपे जरा तू सँभल ।
किया कोशिश बहुत रोकने को,
फिर क्यों उसपे गया तू फिसल ।।
सबकी बातों को अनसुना करके,
तू रहता था बिल्कुल निडर ।
सारे रिश्ते रिवाजों को भुलकर,
काम करता था तू बेफिकर ।।
सबके सामने तू कहता हमेशा,
मैं रहता हूँ बिल्कुल निडर ।
अब ऐसी क्या गलती हो गई है तुमसे,
जो लगने लगा तुझको डर ।।
बारम्बार मैं तुझको समझाता,
फिर क्यों तुझको समझ में न आता ।
गलत काम का अंजाम जो होता,
वो किसी से सहा नहीं जाता ।।
हमें चिंता रहता था तेरा डियर,
इसलिए करता था मैं तुमसे प्रेयर ।
तू मान जाता जो मेरा प्रेयर,
तब तू रहता बिल्कुल ही निडर ।
फिर लगता किसी से ना डर ।।
करवटें बदलता है वक्त भी,
कर ले तू खुद को सशक्त अभी ।
तू रहेगा बिल्कुल ही निडर ।
फिर लगेगा नहीं तुझको डर ।।
जीवन पथ की ये कठिन डगर,
चलना इसपे जरा तू सँभल ।
आगे बढ़ने का सपना जो देखे,
तो इस कोशिश से,
तेरी मंजिल हो जाएगी सरल ।।
कवि – मनमोहन कृष्ण
तारीख – 01/04/2022
समय – 04 : 00 ( सुबह )