जीवन दर्शन (नील पदम् के दोहे)
जहर भर गया जेहन में, कैसा जादू होय,
जैसे कूकुर बावरा, बिना बात के रोय ।
सोना उतना ही भला, जितने से काम चल जाये,
ज्यादा सोया, ज्यादा पाया, तन या मन ढाल जाये ।
सूरज की एक रौशनी, देती अंकुर फोड़,
अपने मतलब की सीख को, लेवो सदा निचोड़ ।
जिस थाली में खा रहा, उसमें करता छेद,
ऐसे जन पहचानकर, कभी न कहियो भेद।
प्रचलन दुष्टों का बढ़ा, बढ़ता कलियुग आज,
सीधा-सरल और सादगी, बन बैठे अपराध ।
समय बड़ा बलवान है, देत पटखनी जोर,
कभी ग़रीब की आँख का, नहीं भिगोना कोर ।
जो जन समय निकाल ले, आपकी खातिर आज,
उसको कभी न भूलियो, उसको रखियो याद ।
जो विपत्ति में साथ दे, उसे नहीं बिसराओ,
काँधे से काँधा दो मिला, जब भी मौका पाओ।
कभी अघाया न थका, देते तुम्हें मन की पीर,
छह गज राखो फ़ासला, जाओ न उसके तीर ।
क्यों दूजे के काम में, सदा अड़ाय टांग,
एक दिन ऐसा आयेगा, खुल जायेगा स्वाँग ।
तारे आँखों के बना, देख-भाल पहचान,
तिनका छोटा आँख में, ले लेता है जान ।
महती बातें तब करो, जब मन होय न क्लेश,
नहीं ते होवे सब गुड़गोबर, कुछ भी बचे न शेष ।
मंदिर तब ही जाइये, जब मन मंदिर होय,
तब मंदिर क्यों जाइये, जब मन मंदिर होय।
देख पताका फहरती, कियो नहीं अभिमान,
क्षणभंगुर सब होत है, त्वचा, साँस, सम्मान ।
दुष्ट तजे न दुष्टता, लो जितना पुचकार,
सठे साठ्यम समाचरेत, तभी सही व्यवहार।
(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव ” नील पदम् “