जीवन तप है।
जीवन तप है, संघर्ष है क्लेश युक्त है।
इसीलिए परमेश्वर हैं।
जो साथी बनकर मौत के बाद भी रक्षक है।
अपने अविराम का भाषा हैं मौत।
पर ईश्वर के नजर में मानव के उत्थान की श्रृंखला का नाम है जीवन में मौत ऐसी हालत समझ।
संस्कारों का श्रृंखला और नवजीवन है मौत।
जीवन की गठरी संभालते संभालते
जीवन स्वतः कर्मशील होकर खोखला हो जाता है।
और अन गति में जाता है।
प्रसिद्ध वेदान्त दर्शन ने भी अद्वैत और द्वैत में जीव को रखा है।
संघर्ष जारी रखें और जीवन जारी रखें।
तृप्ति के मौत को भी स्वीकार करें।
जीवन तप करे, जीवन तप करें , जीवन तप करें।