जीवन जितना
जीवन जितना होता है
कोई उतना कहां जी पाता है
कभी भाग्य कभी अकर्मण्यता
रोना यही रह जाता है
मन के अंतस में
आशाओं का कोई भाव
निरूत्तर रह जाता है
समय के चलते चक्रव्यूह में
कोई ठहर कहां पाता है
कुछ स्मृतियों के अतिरिक्त
जीवन में शेष कहां
रह जाता है !
डाॅ फौज़िया नसीम शाद