जीवन चलचित्र के किरदार कई सारे,
जीवन चलचित्र के किरदार कई सारे,
स्वार्थ की अपनी नैया को खूब सँवारे।
जो पीड़ा हो स्व की तो, फूटते अश्रु के फव्वारे,
और दूजे के घाव देख, लेते ये चटकारे।
सुख में ये बजाते, ईर्ष्या के इकतारे,
और दुःख की घडी में, हो जाते किनारे।
निर्णयों पर चलाते, पूर्वाग्रहों की तलवारें,
और आशओं के आसमां के, ये कर देते बंटवारे।
समक्ष जो हो तो, हम हों उनके दुलारे,
और पलटते हीं कहते, वो काहे के हमारे।
सर्प भी इनका व्यक्तित्व देख फुफकारे,
कि कहाँ रखते हैं ये अपने, ज़हर के पिटारे।
मौन के क्षणों में ये, शब्दों को पुकारे,
और फिर शहर में भ्रमण कर, ये बजाते नगाड़े।
दिखावटी चिंता से इनका अस्तित्व डकारे,
और कटाक्षों की बोली संग मुस्कान ये पुचकारे।
लेकर फिरते हैं ये अपने घमंड के गुब्बारे,
और मिलेंगे भटकते, यूँ हीं चौक चौबारे।
जीवन चलचित्र के किरदार कई सारे,
स्वार्थ की अपनी नैया को खूब सँवारे।