जीवन-चक्र
जमीन में गिरी
बूँद
फिर बीज को
सींचती है ,
वृक्ष बनता है और
बादलो को खींच कर
बारिश कराता है
फिर एक
नयी बूँद जन्म लेती है
नयी आशाओं
नये उजाले
और
नयी ताजगी
के साथ
यही है
जीवन-चक्र
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
जमीन में गिरी
बूँद
फिर बीज को
सींचती है ,
वृक्ष बनता है और
बादलो को खींच कर
बारिश कराता है
फिर एक
नयी बूँद जन्म लेती है
नयी आशाओं
नये उजाले
और
नयी ताजगी
के साथ
यही है
जीवन-चक्र
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल