जीवन क्या है ??
जीवन क्या है ??
बचपन
जवानी
बुढ़ापा
तीन अंशों में गुजरता
अपनी विचार धाराओं पे
दूसरी के अधिकार
में पनपता
और खुद पर हावी
होता समाज
बचपन माँ की आगोश में
कब गुजर गया
जवानी आई
बहुत कुछ लाई
मन प्रफुल, साथ में
जिमेवारी का एहसास
कुछ करने का मन
समय बिता तो
माँ गुजरी, तो
पत्नी ने स्थान लिया
जब बाप बना तो बाप
ने संसार छोड़ दिया
आज, खुद बाप
और घर का
पल पल एहसास
खुद पर अंकुश
लगता परिवार
बन्धन का जीवन
मन खुश रहना
भी चाहे, तो
बस नजर आता
बुढ़ापे का स्थान
और फिर एक दिन
गुजरता हुआ
पल पल, मिटता बजूद
और बहुत बहुत दूर
चार कंधो पर जाता
हुआ शमशान
छोड़ कर सारा जहाँ
अकेला आया, अकेला गया
वाह मेरे भगवान्
वाह मेरे हरी राम
तूं सच है
“”महान”””
कवि अजीत कुमार तलवार
मेरठ