जीवन को नर्क नित किया मीठे से झूठ ने
भटकन को पाँव की भला कैसे सफर कहें
समझो इसे अगर तो हम लटके अधर कहें।१।
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गैरों से जख्म खायें तो अपनों से बोलते
अपनों के दुख दिये को यूँ बोलो किधर कहें।२।
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बातें सुधार से अधिक भाती हैं टूट की
दीमक हैं देश धर्म को उन को अगर कहें।३।
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टूटन दरो – दीवार की करते रफू मगर
जाते नहीं हैं छोड़ कर घर को जो घर कहें।४।
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जाने हुआ है क्या कि सब लगती हैं रात सी
दिखती नहीं है एक भी जिसको सहर कहें।५।
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जीवन को नर्क नित किया मीठे से झूठ ने
कड़वा भले लगेगा सच अब तो मगर कहें।६।